माँ की याद
माँ की याद
कभी तेरी डाँट से निकलने वाले आँसू
आज तेरी याद में निकलते हैं माँ।
कभी तेरी लोरी सुन सोया करते थे,
आज खुद को लोरी सुना सोते हैं माँ।
तेरे हाथ के खाने की ऐसी आदत लगी है,
कि आधा दिन भूखे पेट बिताते हैं माँ;
फिर याद आता है अब माँ न दौड़ेगी कौर ले
पीछे पीछे तो 'यही खाना'
आँसुओं की खट्टी बूंदों के साथ खा लेते हैं माँ।
मैं तो आज भी जागती हूँ रातों में,
पर तेरी नींद की कुर्बानी का ऋण न
चुका पाऊँगी माँ,
अपने सपने के टूटने पर तो शायद संभल जाती,
तेरा सपना तोड़ कर अंदर से हिल चुकी हूँ माँ,
बहुत तकलीफ दिया है आज तक तुझे,
अब सिर्फ खुशियाँ देना चाहती हूँ माँ।
सच बताऊँ तो तुम्हारा जन्मदिन मुझे पसंद नहीं,
तुम्हारी हर घटती उम्र में अपनी उम्र जोड़ना चाहती हूँ माँ।
तेरे से अच्छा कोई नहीं इस संसार में,
तेरा सपना सच कर सुकून से सोना चाहती हूँ माँ।
जन्म लेते तेरी गोद में सोई थी,
तेरी ही गोद में ज़िन्दगी भर सोना चाहती हूँ माँ।