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Subha Dabbiru

Abstract

3.9  

Subha Dabbiru

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मां की भावना

मां की भावना

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क्या अर्ज करूँ आज खुदा से

इस खास दिन में, 

सब कुछ दे दिया उसने

तुझे डाल के मेरी झोली में......


क्या हो हमारे लिए

तुम्हें कैसे समझाऊं? 

सूरज हो, चंदा हो, मेरे आंखों का तारा हो तुम 

अपने पापा की तो शान हो तुम 

क्या कहूं तेरी बहन का, उसकी तो जान हो तुम

अब तो अपने जीवन साथी का भी श्रृंगार हो तुम

क्या हो हमारे लिए

तुम्हें कैसे समझाऊं?......... 


सबका मन मोह लेता है तू

अपने भोलेपन से 

परायों को भी अपना लेता है तू मुस्कराते हुए दिल से.....


शुक्रगुजार हूं खुदा की,  

संस्कारों की दौलत दी है तेरे जीवन में, 

यही कामना रह गई है मेरी, 

पुष्प वृष्टि हो तेरे हर दिन में ......


फूलों के साथ आते हैं कांटे भी राहों में , 

पर विश्वास है बुलंद इस माँ का , अपने लाल के मंसूबों में ....


काम्याबी की ऊंचाइयां छू लेगा तू जरूर, 

बस ना करना किसी बात पर कभी गुरुर......

मां हमेशा अपने आंचल पसारे रखेगी, 

जब भी थकेगा तू, तेरा पसीना पोछ सकेगी. ...

मां की प्यार भरी भावना...!


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