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Manish Badgujjar

Abstract

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Manish Badgujjar

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माँ बेटी एक व्यथा

माँ बेटी एक व्यथा

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जब पैदा हुई वो सब ने दुत्कारा था

वो मां की ममता ही थी जिसने उसको पुचकारा था

ना बाप ने ना दादी ने देखने तक की जहमत उठाई

बेटी पैदा होने की सुनते ही उनकी उम्मीद डगमगाई


देख रहे थे वो बेटे का सपना

जिसे कहते छाती से लगाकर वो अपना

बेटी पैदा हुई तो उनके चेहरे उतर गए

उनके सारे अरमान अंदर ही मर गए


अब पैदा हो गई तो पालना तो था ही

उसे आज के माहौल में ढालना तो था ही

मां ने सबके तानों को सहते उसे पाला था

अपनी परेशानी भुलाकर उसको संभाला था


नहलाती खिलाती उसके लाड लडाती 

उसकी भी तमन्ना थी कि अपनी बेटी को पढाती 

भेजने लगी उसे स्कूल सबके उपर से होकर 

उसको हंसाती खुद सारी रात रोकर 


उनकी हंसी भी जमाने को पसंद ना आई 

इंसानी भेड़ियों ने अपनी गंदी नजरें उस पे जमाई 

डरी डरी रहने लगी अब वो स्कूल आते जाते 

अचानक उठ जाती थी खाना खाते खाते 


जैसे तैसे उसने स्कूल पूरा कर लिया 

इसके बाद पैर काॅलेज में धर लिया 

सोचा था पढेगी लिखेगी आगे बढेगी 

अपनी मां के हर सपने को पूरा करेगी 


लेकिन हवस के दरिंदों ने उसे वहां भी नहीं छोड़ा 

उस फूल सी बेटी को एक एक ने निचोड़ा 

जैसे तैसे गिरते पड़ते घर को आई 

रोते रोते मां को आप बीती सुनाई 

मां अंदर से बिल्कुल टूट गई लेकिन

अपनी बेटी को टूटने ना दिया 


उसने बेटी को इंसाफ दिलाने का फैसला लिया 

बेटी को लेकर रात को ही पंहुच गई थाने में 

वहां पंहुच कर लगा जैसे आ गई हो मयखाने में 

सब शराब पिए हुए थे 


मेज पर एक और बोतल लिए हुए थे 

मां बेटी ये सब देख कर डर गई 

नासमझी में कैसे इतनी बड़ी गलती कर गई 

क्यूँ भूल गई भेड़िए यहां भी भरे पड़े हैं 

इनके जज्बात भी मरे पड़े हैं 


फिर भी डरते डरते मां ने सारी बात बताई 

फिर उनके उल्टे सीधे सवालों से बेटी घबराई 

भेड़िये बोले बेटी को यहीं छोड़ कर घर को चली जाओ 

ढूंढ लेंगे उनको हम तुम सुबह को थाने आओ 

मां बेटी दोनों और ज्यादा डर गई 


सोचने लगी कैसे इन भेड़ियों से इंसाफ की उम्मीद कर गई 

भाग ली उल्टे पैर वहां से दोनों एक साथ 

भागती रही पकड़ के एक दूसरे का हाथ 

भागते भागते पहुंची एक कुएं के पास 

अब नहीं दिख रही थी उन्हें कोई जीने की आस 


रोई बहुत दोनों गले लगकर 

बैठ गई वहीं जिंदगी से थक कर 

फिर कूद गई कुंए में पकड़ एक दूसरे का हाथ 

कुछ पल में ही छोड़ दिया सांसो ने साथ 


इंसानी भेड़ियों ने आज फिर

एक मां बेटी को कर दिया मजबूर 

चली गई दोनों इस वहसी दुनिया से बहुत दूर 

संभल जाओ अब भी ए दुनिया वालों


बेटियाँ घर की इज्जत हैं उन्हें गले से लगा लो

"मनीष" अपनी बेटी को इस दुनिया में लाएगा

उसके लिए सारी दुनिया से टकरा जाएगा

अब और जुल्म ना होने देंगे बेटियों पे ये ठान लेना है 


बेटियों से ही है दुनिया में खुशियां ये जान लेना है। 


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