लॉक डाउन में मजदूर की कहानी
लॉक डाउन में मजदूर की कहानी
हम नहीं चलना चाहते, इस घनी दुपहरी में
हम तो बेबस, बेसहारा हैं.
हमें ना बनाइये राजनीति का मुद्दा
हमें ना बनाइये खिलौना और गुड्डा....
हमारी मज़बूरी है मीलो चलना
हमारी मज़बूरी है उस मज़बूरी में ढलना
हम चले दस कदम से, दस दिनों तक
एक रोटी का सहारा लिए,
आगे बढ़ते उस मंजिल तक....
हमें नहीं पता क्या है जरुरी?
इस पेट आग, जब तक ना हो पूरी...
हम चलते रहेंगे, हम तय करते रहगे दूरी...
शायद हम मर भी जाएं
शायद हम मंजिल तक ना पहुंच पाएं....
अफ़सोस होता है, उस राजनीति पर
लोगों की भूख का मुद्दा उठाने पर
उम्र बीत जाएगी, विश्लेषण करने पर
हम तो मजदूर हैं..
हम तो मजबूर है मजदूरी करने पर......
इस घनी दुपहरी, सड़क पे चलने पर
