लोक व्यवहार नेग रिवाज
लोक व्यवहार नेग रिवाज
लोक व्यवहार नेग रिवाज, बेटियां माँ-बाप के सिर का ताज
कल से लेकर आज, हमें है अपने प्राचीन संस्कारों पर नाज।।
मायके से किसी भी बेटी की दुल्हन रूप में जब होती थीं विदाई
तब उपहार स्वरूप कुछ भी देने की कला सदियों से चलीं आई।
आदान-प्रदान की ये सुंदर रीत हम सभी ने मिलकर खूब मनाई
अपनी नन्ही-प्यारी सी गुड़िया रानी पर लाल पौशाक सजाई।
प्राचीन परंपराओं में फिर होने लगा ऐसा बदलाव
ससुराल में बहू को मिलने लगा बेटी जैसा लगाव।
प्रत्येक सदस्य संग प्रेमपूर्ण और मधुर भाव
अब तो सुपुत्री के जीवन में केवल चाव ही चाव।
लोक व्यवहार का दस्तूर हम सभी को निभाना है
नेग रिवाज में हैसियत नहीं हरियाली को फैलाना है।
शुभ लाल जोड़ी के हाथों से पौधे खूब लगवाने हैं
नेक काम करते हुए सांसारिक रिवाज खूब सजाने हैं।
