लिंग-भेद
लिंग-भेद
जब दस्तक दिया मैंने, इस अंजान सी दुनिया में
नहीं पता था जाति-लिंग का भेद
न जानती थी पढ़ना कोई काव्य और वेद
पहले ही पल लिंग भेद समझाया गया
बेटी हूँ ना इसलिए जन्म लेते ही मातम सा मनाया गया ,
पहली औलाद वो भी लड़की, क्या होगा घर का हाल
कैसे बढ़ेगी आगे की पीढ़ी? सबके मन में यही सवाल
इन सवालों द्वारा मुझसे दूरी बनाया गया,
जब दस्तक दिया मैंने, इस अंजान सी दुनिया में
पहले ही पल लिंग भेद समझाया गया,
तीन साल की थी जब गयी घुमने मेला
मुझे वहाँ एक झूला भाया था
पापा खरीदने चले तो माँ ने बेटी है
ये कह अंकुश लगाया था
मैं नादान रूठ गयी और खुद छुप उनसे
मेले में दौड़ लगवाया
तभी एक अंकल ने मुझे झूला दिखा बुलाया था
फिर पता नहीं क्यों मुझे उन्होंने खुब तेज पकड़ा
अपने बाजुओं से मुझको था जकड़ा
मैंने तब माँ चिल्लाया
माँ दौड़कर आइ और घरवालों द्वारा मुंह दबाया गया
जब दस्तक दिया मैंने, इस अंजान सी दुनिया में
पहले ही पल लिंग भेद समझाया गया!
