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Prem Shankar

Abstract

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Prem Shankar

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लिखना जरूरी: क्यों ?

लिखना जरूरी: क्यों ?

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मुसीबतों के सामने घुटने टेकते किसी के हो हौसले

गुम होती नभचर दुनिया यह चिड़िया के हो घोसले

दिल में धधकने लगती है ज्वाला की लपट भंयकर

न्यायाधीशों के दरबारों से जब आते हो गलत फैसले।


देख अन्याय मन के बेकाबू होने लगे जज्बात

इंसान होने पर भी अलग अलग होने लगे जात

उफान लेने लगता है आंखों में खून का समंदर ,

दे स्वाभिमान को गाली पनपे आस्तीन के सांप।


होने लगे जब घोटाले और बढ़ती हो कालाबाजारी

साधु संतों को बदनाम करते बाबा बने बलात्कारी

प्रतिभा बिकने लग जाए जी जब नोटों की ओट में,

सिसकती है कलम भी जब दरिंदों की भेंट चढ़े नारी।


प्रदूषण में लिप्त हो पर्यावरण रोगों की पड़ने लगे मार

अन्नदाता सोता हो भूखा वादों से मुकरने लगे सरकार

देश के स्वाभिमान को मिलती हो जब

गालियां साहब झूठ,फरेब,

नफरत की दुनिया मुंह फाड़ता हो भ्रष्टाचार


कलम की जगह नन्हे हाथों में जब हथियार मिले

नन्ही मुन्नी सी काया पर जब सोलह श्रृंगार मिले

नयनों से नयन लड़े हो जाए जब किसी से प्रीत,

दर्द बयां करूं कैसे जब मुझे अपने ही गद्दार मिले।


इश्क में ना गिड़गिड़ाना हूं चंबल का पानी खुद्दारी लगता है

है धिक्कार जिन्हें संस्कृति अपनाना भी मजबूरी लगता है

वीर शहीदों का त्याग,समर्पण,बलिदान लिखू अपने लब्जो में,

जलता हो देश मेरा तब उठा कलम लिखना जरूरी लगता है।


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