लहू का रंग नहीं बदलेगा
लहू का रंग नहीं बदलेगा
अचानक !!
कब और कैसे
मैं हिंदू और तुम मुसलमान हो गए !
दीवाली की रौशनी,
होली के रंग संग
सहरी और इफ्तहार,
साथ करते-करते,
दरख़्त से हम बढ़ गए ।
इंसानियत की खातिर
जब अपनों से भिड़े,
फिर क्यों
मंदिर और मस्जिद के नाम पर
आज लड़ गए ?
मंदिर की आरती,
मस्जिद से अज़ान,
गुरुद्वारे में गुरुवाणी
प्रार्थना के लिए चर्च में जाना,
सब कुछ तो सांझा था ।
फिर क्यों ?
मंदिर मेरा और मस्जिद तेरी,
यह क़रार हो गया ?
कब और कैसे
मैं हिंदू और तुम मुसलमान हो गए !
ईद की सेवइयां,
दिवाली की मिठाइयां,
गुरुद्वारे का वो कड़ा प्रसाद,
लंगर की पंक्ति में खड़े साथ साथ,
फासले कब दरमियान बढ़ गए
ईश्वर मेरा और अल्लाह है तेरा,
बंटवारे का यह बीज,
ज़हन में कैसे उग गया ?
कब और कैसे
मैं हिंदू और तुम मुसलमान हो गए !
मां से अम्मी, अब्बु से बाबा,
बाज़ी-आपा का मुंह बोला भाई,
धर्म के नाम पर क्यों,
बेईमान हो गया ।
देखते ही देखते
फकीर और साधु में, मतभेद हो गया,
गीता मेंरी, कुरान तेरी,
गुरुग्रंथ और बाइबिल पर विवाद छिड़ गया ।
मज़हब के नाम पर
कब और कैसे
मैं हिन्दू और तुम मुसलमान हो गए।
घृतराष्ट्र सम शासनतंत्र,
बना शकुनि, साद मौलाना,
निर्लज !
पासा चल हिन्दू-मुस्लिम का,
खंजर साम्प्रदायिकता का,
देखो ! मानवता के सीने में घोंप रहा है।
मुझको हिन्दू, तुमको मुस्लिम
बतला - बतलाकर,
रोटी अपनी सेंक रहा हैं।
तिरंगे की नजरें भी झुकी हुई,
कभी भगवा , कभी हरे नाम पर,
श्वेत रंग में शेष है ममता,
निष्ठुर होकर कैसे क्रंदन,
संतति का सुनने के खातिर,
नही बदली है, नहीं बदलेंगी
अर्थी और कफ़न की चादर।
रंग लहू नही बदलेगा,
हिन्दू और मुस्लिम की खातिर।
एक ही पल में फिर क्यों ?
कब और कैसे
मैं हिन्दू और तुम मुसलमान हो गए ।