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himangi sharma

Abstract Inspirational

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himangi sharma

Abstract Inspirational

क्यों तुम्हें दुःख साझा करना नहीं आता ?

क्यों तुम्हें दुःख साझा करना नहीं आता ?

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क्यों तुम्हें दुःख साझा करना नहीं आता,

देखा हैं मैंने तुम्हें ऐ पंछी, कई दिनों से बहुत उदास रहती हो,

जैसे कहना चाहती हो बहुत कुछ, पर हर दर्द सहती हो,

माना कि जिम्मेदारियां तुम्हें भी हराती हैं,

तुम्हें भी हर तरह की परेशानियां सताती हैं,

पर क्या तुम अपना गाना मुझे फिर से नहीं सुनाओगी,

कर्तव्य पथ पर चलते चलते अपनी प्रकृति भूल जाओगी,

तुम भी इंसानों की तरह अब व्यस्त होने लगी हो,

अपनी बड़ी खुशियों के लिए छोटी - छोटी खुशियां कुर्बान करने लगी हो, 

इंसानों की तरह अब तुम भी मुस्कुराना भूल गयी हो,

जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े, कहाँ कहाँ निकल पड़ी हो,

पहले तो आशियाना तुम्हारा बड़ा ही कमाल था,

किन्तु अब तुम भी ईंटों की तलाश में फिरने लगी हो,

जिसका जो काम है, वही उस पे सजता है,

पर अब तो तुम खुद को खुदा समझने लगी हो।



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