क्यों नहीं...??
क्यों नहीं...??
बेनाम ख़तों पर तेरा नाम क्यों नहीं
गवाह सब हैं तुझ पे कोई इल्ज़ाम क्यों नहीं
एक बार हो तो इत्तेफाक लगता है हादसा भी
रोज़ बिछते कांटों पर कोई लगाम क्यों नहीं
थक गए हैं अब रास्ते भी ज़िंदगी के
आग़ाज़ ही आग़ाज़ हैं कोई अंजाम क्यों नहीं
अपने दर पर बुलाया होगा किसी खास मक़सद से
फिर अपनी मेहमान नवाजी का कोई इंतजाम क्यों नहीं
यकीन कैसे आ गया उसे मेरी बात पर युं ही
कब कहां और कैसे का कोई ताम झाम क्यों नहीं
भागता जा रहा है दिल खुशियों की तलाश में
रौशन बताओ ज़िन्दगी में कोई आराम क्यों नहीं।