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aman prakash

Romance

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aman prakash

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क्यों बन चुकी हो तुम खुशी मेरी?

क्यों बन चुकी हो तुम खुशी मेरी?

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बीत रही थी जो जिंदगी अकेले मे

रीना किसी के जाने का गम था, ना आने की खुशी ।

फिर क्यों तक्दीर ने तुमसे मिला दिया

जब किसी के साथ होते का नामों - निशां ना था ॥


मिली एक दिन यूँ

ही एक अजनबी हसीना अंदाज़ था अलग , अलग था उसका निखरना ।

हँसी उसकी जैसे एक बहार लाने वाली एक खुशनुमा शाम,

आँखों की चंचलता जैसे खुले तारों से सने आसमा में खिलता एक चाँद ॥


उसकी डाँट के पीछे छुपा एक प्यारउसके रूठेपन को हटाने की खुशी का ख्वाब ।

दुख में उसकी रोता है दिल मेरा भी खुशी में उसकी झूम उठता है मन मेरा भी ॥


बातों से उसकी होने लगा प्यार,सुनहरे रूप से उसके होने लगा इकरार

उसकी एक झलक का करने लगा ये दिल इंतजार,

कहने लगा मन क्या करदूँ अपने प्यार का इजहार ?

करता हूँ प्यार तुमसे जिंदगी से ज़्यादा डरता नहीं मौत से तेरी जुदाई से ज्यादा

चाहे आजमाले मुझे किसी और से ज़्यादा जिंदगी थोड़ी है आपकी मोहब्बत से ज़्यादा ॥


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