कयामत तक याद करोगे
कयामत तक याद करोगे
कयामत तक याद करोगे
किसीने दिल लगाई थी
बिन कुछ मांगें, बिन कुछ कहे
बेपनाह मोहब्बत करती थी।
खोने के डर से कभी बता नही पाई
दिल की अनकही बातें,
तुम्हें देखने की बाद किसी औरों से
नजर तक ना मिलाया करती थी।
ना कभी समझा ना समझने की
कोसिस की तुमने....
वो अक्सर उसकी दिल की बातें
सायरी से बताया करती थी।
हां कभी नाम नहीं लिया तुम्हारा
मगर इशारा तुम्हीं पर हीं था
हर दुआओं हर मन्नतों मैं
तुम्हारा नाम लिया करती थी।
कयामत तक याद करोगे किसी ने
दिल लगाई थी।

