क्या वास्ता
क्या वास्ता
तेरी मोहब्बत पे हूं जी रहा
मुझे किस्मतों से क्या वास्ता
मंजिल से पहले खत्म हो
उन रास्तों से क्या वास्ता
क्यों तोड़ कर अपनी कसम
कोई रंजोगम पैदा करूं
क्यों भूल से भी तुझे भूल कर
दुनिया पर दिल शैदा करूं
जिन पर न तेरा नाम हो
मुझे उन खतों से क्या वास्ता
हर आरजू इस ज़ीस्त की
खुशियां कहां दे पाएगी
दीवार है यह रेत की लहरों में
यह मिल जाएगी
छीने जो मेरे करार को
उन दौलतो से क्या वास्ता
एहसास है इस बात का
दिन रात तू मेरे पास है
ख्वाहिश कोई बाकी नहीं
बस एक तुम्हारी आस है
कमजोर कर दे जो मन मेरा
उन ताकतों से क्या वास्ता...।
