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Shivam Kumar

Tragedy

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Shivam Kumar

Tragedy

क्या रूह नहीं काँपती तुम्हारी

क्या रूह नहीं काँपती तुम्हारी

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हमें तो पानी बहाने से भी डर लगता है

और तुम रोज़ खून की नदियाँ बहाया

करते हो,

अरे ख़ुदा के कहर से डरो,

तुम उन नन्हे मासूम बच्चों के रूप में

ख़ुदा को रुलाया करते हो...


थोड़ी सी भी रहम नहीं तुम्हारे ज़हन में,

ना ही तुम किसीको अदब अदा करते हो,

जब एक करने नहीं आता तुम्हें,

तो फिर क्यों अपनों को अपनों से ही

जुदा करते हो...


किसी कीड़े की तरह मसल देते हो

खुले आम तुम आवाम को,

उस ख़ुदा ने रहम करना छोड़ दिया

न तो रो पड़ोगे आराम को...


खुले में क्यों करते हो कत्ल-ए-आम

तुम दहशतगर्दों की तरह,

है अगर बाजुओं में दम,

तो क्यों छुप छुप कर करते हो

वार नामर्दों की तरह...


खेलने और बस्ता उठाने की उम्र में

क्यों उनसे बंदूक और बम ढुलवाते हो,

क्यों दर्द देते हो अल्लाह के नूरों को,

हँसने के जिनसे हँसता हो सारा जहां

क्यों उन्हें रुलाते हो...


जिन्होंने इस दुनिया में कदम तक

नहीं रखा अपना, क्यों दुनिया में

आने से पहले ही उनका हक

छीन जाते हो,

जो मासूम कलियाँ फूल तक नहीं बनी

अभी क्यों उनको पेड़ सहित ही

मार गिराते हो...


उस ऊपर वाले से डरो,

उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती,

और डरता है उनसे जहां सारा,

तुम ना कसूर देखते हो ना गुनाह,

यूँ ही मौत के घाट उतार देते हैं

उसे जो था बूढ़े मां-बाप का इकलौता

सहारा...


एक भाई की कलाई पल भर में

सूनी हो जाती है, एक माँ का लाडला

हमेशा के लिए उनसे दूर कर

दिया जाता है, क्या तू ज़रा भी शर्मिंदा है,

अरे शर्म कर ए बंदे तूने भी उसी

माँ के कोख से जन्म लिया

तू भी उसी माँ के दूध के कर्ज़

तले अभी तक जिंदा है...


सालों के खून पसीने की मेहनत से

बनाई हुई प्यार और खुशहाली भरी

वो मकान टूट कर यूँ ही बिखर जाती है,

अरे तेरा भी बचपन बीता होगा वैसे ही

किसी घर में, तेरे सामने तो टूटते है

वैसे कई,

पर क्या ज़रा सी भी रहम आती है...


वो लाचार बेबस माँ खड़ी रहती है

चौखट पर इस आस में कि जो बेटा

घर से निकला बाहर, वापस लौटेगा या नहीं,

और तुम बुजदिलों और खुदगर्जों की तरह

ये सोचते रह जाते हो की तुम्हारे

मारने से पहले मर न जाए कोई कहीं...


एक बाप की उम्र भर की कमाई

लग जाती है अपनी बेटी ब्याह करने में,

पल भर में न जाने कितनों के सुहाग

उजड़ जाते हैं,

इतनी मौतों को देखकर थोड़ा तो

पिघलता होगा तुम्हारा दिल भी,

न जाने कैसे ये सब देखकर

तुम्हारे चेहरों पर मुस्कान निखर आते हैं..


अरे मारते हो क्यों तुम उन खुदा के नूरों,

को बेबस लाचार बेकसूरों को,

अरे मारना है तो अपने अंदर छुपी

बुराइयों को मार दो,

अगर सुधार नहीं सकते किसी और को

तो कम से कम खुद को सुधार लो....।


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