क्या है कविता ?
क्या है कविता ?
दिल में भाव उमड़ते-घुमड़ते है बादलों की तरह
मन मे बहती है भावनाओं की चंचल सरिता
उकसाते मुझे, नीलगगन पर छा जाने बन घटा
बरस जाने कागज पर बन कर अनुपम कविता
बासंती फूलों का रसपान करते भँवरो की तरह
लरजता है मन भर लेने नैनों में भर लेने ये छटा
भीनी-भीनी सुवासित सुगंध करती मन बेकल
भर दूँ प्रेमी मन में माधुर्य बनकर मंजुल कविता
है कोई देखनेवाला, किस हाल में जी रही जनता
भूखे-प्यासे चल रहें हैं ,धूप में जल रहें हैं मजदूर
छिन गया आशियाना, रोजी-रोटी का ठिकाना
क्या है इनकी खता पूँछूँ बनकर यथार्थ कविता
कभी-कभी मन टटोलता है जीवन के रहस्यों को
क्या है संसार, कौन है प्राणी, क्यूँ आए धरा पर हम
एकांत में आ विचार यह अन्तर्मन को झिझोड़ता
"परहित जीना ही है जीवन"बता दूँ बनकर कविता।
