होली के रंग
होली के रंग
फाल्गुन आयो, मस्त बावरी बासंती
बयार बहत है
जिया सबही के हिलोर उठत है,
फिज़ा में मदहोशी घुलत है
गाँव के चौपालन में फाग-धमार गूंजत है
रंग-बिरंगी होली है आई रंग-टेसू उड़त है
गुझिया- मालपुन की खूशबू महकत है
नुक्कड़ चौराहन पर ठंडई-भांग छनत है
अवधपुरी में जानकी- रघुवीरा, बृज में
कान्हा संग राधा मस्त होली खेलत हैं
मथुरा- बरसाने- वृन्दावन लट्ठ बजत हैं
मतवारे बावरे हँस -हँस मार सहत हैं
पिया -गोरी खुलेआम गरवा मिलत हैं
बच्चन का अलग ही हुड़दंग मचत है
जाने -अनजाने सबही पर रंग डारत हैं
बैर भाव भूल बरबस सब गले मिलत हैं
बिरहन के जी की जाने कौन? बूझे कौन?
पिचकारी की धार से संताप बढ़त है
पिय बिन सब सून, रंग जैसे नाग डसत हैं
अबीर-गुलाल प्राकृतिक रंगों से खेलो होली
पर्यावरण को हो नुकसान, नहीं करना
ऐसा काम
प्यार से खेलो होली, बस करो नफ़रत
की बोली
त्योहार हैं भारतीय संस्कृति की पहचान,
मनाएं सब मिल सिक्ख-इसाई-पारसी-
हिन्दू-मुसलमान
