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Punit Kaur

Abstract

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Punit Kaur

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कविता

कविता

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एक हंसती खेलती ' कैद ' चिड़िया ...

आज उड़ते ही मुरझा सी गई

क्यूं?...

आसमान की ऊंचाइयों की आस में.... उसे हवा के झोंके ने यूं गिराया,की वो शायद हार गई,

फिर एक दिन एक रोशनी आई, वो भी "हरफन" की ....

दिमाग में जंग लिए, दुनिया से वो लड़ रहीं,लेकिन सबके सामने चुप है,शायद वो दिखाना नहीं चाहती 

या क्या मालूम....

लेकिन इतना मालूम है, कि वो छुईमुई तो नहीं....  

खैर जो भी हो, अभी भी एक ज़हन में सवाल है... 

एक हंसती खेलती ' कैद ' चिड़िया 

आज उड़ते ही मुरझा सी गई ना जाने "क्यूं"..??


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