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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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कुछ लम्हें

कुछ लम्हें

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कुछ लम्हे बहुत याद आते हैं

आंखों में वो नीर भर लाते हैं

जब तन्हाईयो का शोर होता हैं

कुछ चेहरे बडे याद आते हैं


यूँ तो रोशनी चरागों से होती हैं

दिल मे रोशनी यादो से होती हैं

अपने किसी ख़ास की याद से,

ये दिल के दिये बड़े जगमगाते हैं


मां तेरी याद में, ये आंसू 

तेज़ाब सा बन मुझको जलाते हैं

कुछ लम्हे बहुत याद आते हैं

आंखों में वो नीर भर लाते हैं


जब जब भी में रोता हूं

आंसू नही में खोता हूं

मुझे पता हैं, ये आईने की 

हंसी मुस्कुराहट ले जाते हैं


तेरा साथ गुजरा हरपल माँ,

मुझे ख़ुदा की याद दिलाते हैं

पर अब में कहां जाऊं,

किसकी गोद मे सर रख सो जाऊं


मेरा तो ख़ुदा ही तू था,

अब इस ज़माने में,नही कोई 

मुझे लोरी गाकर सुनाते हैं

मानता हूं, जो आया वो जायेगा


पर कहाँ मुझे वो ख़ुदा मिल पायेगा

जिसकी गोद मे हम अपने,

दरिया से गम यूँही भूल जाते हैं

कुछ लम्हे बडे याद आते हैं


आंखों में वो नीर भर लाते हैं

मां भले तू तन से हमे छोड़ चली गई हैं

पर आज भी तेरे पास होने के,

हमें हर पल ही ख्याल आते हैं।


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