कुछ बहुत बेहतरीन लम्हे
कुछ बहुत बेहतरीन लम्हे
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नहीं क्या था कहा हमने
चुनी जब राहें अपनी थी
मिलेंगे हम नहीं जो फिर
तो थोड़ी याद ही रख ले।
की खाली जेब थी रहती
हमे था गम नहीं इसका
वो जंगल में पहाड़ों पर
चलो खो जाएं हम कहता।
पहाड़ों में वो रातों को
लगा मफलर पहन जैकेट
टहलना रात भर यूँ ही
बहकना रात भर यूँ ही।
किसी की चुगलियाँ करना
दिखे जो राह में चलता
शहर के जलते बल्बों का
यूँ लगना की सितारे हैं।
ये जंगल और नदी पर्वत
हमारे हैं तुम्हारे हैं
कभी हँसते कभी रोते
कभी बेबात ही लड़ते।
हो जाते एक थे फिर हम
कि जैसे कुछ हुआ ना हो
कभी जंगल में खो जाना
कभी बैराज पर मिलना।
नहाने फॉल के नीचे
वो मीलों दूर तक चलना
ठिठुरती सर्द शामों में
वो तीखी चटनियां मोमो।
थे जिसका सूप तुम पीते
मै चटनी चाट के खाता
खुली आजाद राहों से
हवा के सर्द झोंको में।
सुई से चुभते पानी को
यूँ ही कुछ देर तक सहना
बिना सोचे बिना समझे
किसी भी वक़्त चल देना।
कही अंजान ढाबे पर
वो खाना बैठ कर मैगी
घने कोहरे में बाइक पर
हवा में कुछ हवा होकर।
लगा वोडका लगा बीयर
समझना की सिकंदर हम
नहीं जो हमने कल देखा
फिक्र किस बात की और क्यूँ।
अभी कुछ और करते हैं
की थोड़ा और जीते हैं
तुम्हारी याद रख लेंगें
जो बीता साथ रख लेंगे।
कही हर बात रख लेंगें
ये दिन और रात रख लेंगे
नहीं फिर मुड़ के देखेंगे।