कठपुतली की तरह हूँ
कठपुतली की तरह हूँ
आँखों से अश्रु की नदियां
बहती है
जी भर जी भी नहींं रही हूँ
सखी मौत भी नहीं आती
मेरे जीवन में
काश ! किसी दिन आ जाए
मरकर मैं आजाद हो जाऊँगी
इस जीवन से
ये जीवन भी क्या जीवन है
जिसमें न तो चैनों सुकून है
न ही सर्वदा के लिए खुशियाँ
पति के असमय देहांत के पश्चात
किस तरह जी रही हूँ
इस बात को
केवल वही नारी समझ सकती है
जिसने असमय प्रिय को खोया हो
ताउम्र जिस लाल को किसी
चीज़ की कमी महसूस न होने दी
मैंने मन भर प्रेम किया जिस लाल को
उसी पुत्र की नजरों में मैं आज
काँटों की तरह चूभ रही हूँ
हाँ मेरी आँखों का तारा अब
अपनी माँ को बेकार समझने लगा है
मैं तो इक कठपुतली की तरह हूँ
जो ख़ुद की मर्जी से जी भी नहींं सकती।
