क्षमा
क्षमा
कितना सुन्दर होता जीवन
कितनी सुन्दर होती वसुधा
क्षमा जो कर देती मनुष्य को
प्रकृति- न ढाती अब जो विपदा
दंभ मनुज का ले कर उसको
डूबा रहा जीवन सरिता में
त्राहि- त्राहि रुदन करता वह
हाथ जोड़ वंदन करता है
हुई त्रुटि निश्चय भयंकर
प्रकृति को जो बिसर गए सब
अपनी करनी पर मनुष्य अब
कर जोड़ निवेदन करता है
क्षमाशील हो वसुंधरा तब
शांति जग में स्थापित करती है
ममता की मूरत बन फिर से
स्थिरता का जागृत करती है
