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कर्तव्य नहीं बदला मैंनें।

कर्तव्य नहीं बदला मैंनें।

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कर्तव्य नहीं बदला मैंने।

मन बदला है पर अपना, मन्तव्य नहीं बदला मैंने।

कर्तव्य नहीं बदला मैंने।


मन्जिल को पाना ही है,

हर कठिन डगर जाना ही है।

पर क्यों डगर चलें ऐसी,

जिसको मन्जिल तक ही है।


गति बदली है पर अपना, गन्तव्य नहीं बदला मैंने।

कर्तव्य नहीं बदला मैंने।


बातें बड़ी-बड़ी करने से,

स्वपन बड़े बनते हैं।

स्वपन को जो साकार करे,

वो ही 'नृप' बड़े बनते हैं।


वाणी बदली पर अपना, वक्तव्य नहीं बदला मैंने।

कर्तव्य नहीं बदला मैंने।




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