कलम, कविता और कवि
कलम, कविता और कवि
मैं कवि हूँ कविता को जीता हूँ,
नीलकंठ की तरह विष भी पीता हूँ ll
स्वाभाव को नर्म रखता हूँ,
कलम को हमेशा गर्म रखता हूँ ll
राजनीति के प्रस्ताव को ठुकराता हूँ,
सच्चाई के आगे सौ बार शीष झुकाता हूँ ll
मेरी कविता किसी से भी न डरती है,
जरूरत पड़ने पे मेरे विरुद्ध भी लड़ती है ll
जिस दिन सच्चाई से मेरी कलम मुँह मोड़ेगी,
उस दिन मेरी कविता ही मेरी कलम तोड़ेगी ll