किस्सा मेरी जिंदगी का
किस्सा मेरी जिंदगी का
एक दिन सपना नींद से टूटा,
खुशी का दरवाजा फिर से रूठा।
मुड़ कर देखा तो वक़्त खड़ा था,
जिंदगी और मौत के बीच पड़ा था।
दो पल हंस के मेरे पास वह आया,
पूछा मिली जो खुशी उसे क्यूँ ठुकराया।
जवाब सुनकर वह भी रोने लगा,
कहीं ना कहीं मेरे दर्द में खोने लगा।
मेरा भाई कभी हंसा ,नहीं खुद के लिए,
जिया हो जिंदगी पर न कभी अपने लिए।
इस खुशी का बस एक ही इंसान मोहताज था,
मेरी जान मेरी धड़कनो का वो ताज था।
आखिर खत्म होगया किस्सा मेरी जिंदगानी का,
पर नाज़ रहेगा मुझे अपनी कहानी का।।
