ख़्वाब
ख़्वाब
ये ख़्वाब ही तो है,
टूट के फिर जुड़ने तो दो,
हम तो बस नींद में है,
पलकें जरा उठने तो दो।
ये आगाज़ ही काफी है,
कदम जरा चलने तो दो,
मंज़िल गर साहिल ही है,
तो सागर पार होने तो दो।
चंद कदम का फासला है,
रुक के जरा साथ तो दो,
साथ चलना ही ज़िन्दगी है,
बस हथेलियों को भिड़ने तो दो।
