पता नहीं
पता नहीं


कब ये वक़्त रुके, पता नहीं
क्यूं तेरी ही याद आए, पता नहीं।
तू ही शामिल है मेरे हर अल्फ़ाज़ में
कब बोल पड़े, पता नहीं।
कब ये आंखें बरसे, पता नहीं
कब तू ख्वाब में उभरे, पता नहीं।
तू ही शामिल है मेरी हर नज़्म में
कब ग़ज़ल बने, पता नहीं।
कब ये रात गुज़रे , पता नहीं
कब ये यादें मिटे, पता नहीं।
तू ही शामिल है मेरी हर धड़कन में,
कब ये रुके पता नहीं।