खुदा से लौ लगी है
खुदा से लौ लगी है
ये किस तरह की परछाइयां हैं,
कभी लगती अपनी,
कभी गुमनाम तन्हाइयां हैं।
मैं रूका हूँ महज़ चंद साँसो कि ख़ातिर,
पर थका नहीं कभी एक भी लम्हे के लिए।
काम मेरे नाम लिखे हैं बहुत सारे ख़ुदा ने,
जिन्हें करने का जिम्मा मैंने ख़ुद उठाया है।
मेरे बाजुओं में दम मेरी मेहनत का है जनाब,
तुमने तो बस मेरी हंसी देखकर मेरी खुशी का
अंदाज़ा लगाया है।
मेरा किसी से कोई बैर नहीं तो समझना ना गलत मुझको,
मेरी बस उस ख़ुदा से लौ लगी है,
मुझे दुनिया से कोई सरोकार नहीं।
