ख़ुद की संगिनी
ख़ुद की संगिनी
है नज़ाकत तुम में, मतलब ये नहीं कि झुकती रहो
है शराफत पूरी मगर यूं ना आदम के तले गिरती रहो,
उड़ाओ सर अपना, नज़रे बिल्कुल सीधी तान
करे जो कोई ज़ोर जबरी तो भेदो ज्वाला बाण ,
करोगी ख़ुद को सशक्त, बनो ख़ुद की संगिनी
जल छू के लो प्रण, बुन डालो मधुर तरंगिनि।
