कही-अनकही बातें
कही-अनकही बातें
रुठकर भी करती हूँ इन्तज़ार तेरा,
लडाई कइ दफ़ा और तुमसे करनी हैं !
रोक के खुद को फिर चल देती हूँ तेरी और,
तनहाईयों को भी मेरी जैसे कुछ बातें सुननी हैं !
ज़ख्म भी तेरा, उसकी दवा भी हो तुम
मल्हम से आज मेरी तुझे चोट भरनी हैं !
फ़ासले है अब सबसे, बस तू ही छूटे ना
तेरे जिक्र मैं ही जन्नत मेरा दीदार करना हैं !
महफ़ूज़ है प्यार मेरे दिल के शामियाने में कहीं,
लगा बोली तू सिर्फ़ एक बार,
और कई जिन्दगी तुझपे मुझे नीलाम करनी है !
तू देख ले मुझे बार - बार आज़मा के,
मैं तो भूल जाती हूँ गलतियां गले लगा के !
तुझे खोकर भी पाने की यूँ जिद करनी है
मुकम्मल हो बस साथ तेरा,
फिर राहों की मुझे ना फ़िक्र करनी है !

