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Charmi Vora

Romance

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Charmi Vora

Romance

कही-अनकही बातें

कही-अनकही बातें

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रुठकर भी करती हूँ इन्तज़ार तेरा,

लडाई कइ दफ़ा और तुमसे करनी हैं !

 

रोक के खुद को फिर चल देती हूँ तेरी और, 

तनहाईयों को भी मेरी जैसे कुछ बातें सुननी हैं ! 


ज़ख्म भी तेरा, उसकी दवा भी हो तुम

मल्हम से आज मेरी तुझे चोट भरनी हैं ! 


फ़ासले है अब सबसे, बस तू ही छूटे ना

तेरे जिक्र मैं ही जन्नत मेरा दीदार करना हैं !


महफ़ूज़ है प्यार मेरे दिल के शामियाने में कहीं, 

लगा बोली तू सिर्फ़ एक बार, 

और कई जिन्दगी तुझपे मुझे नीलाम करनी है !


तू देख ले मुझे बार - बार आज़मा के,

मैं तो भूल जाती हूँ गलतियां गले लगा के ! 


तुझे खोकर भी पाने की यूँ जिद करनी है

मुकम्मल हो बस साथ तेरा,

फिर राहों की मुझे ना फ़िक्र करनी है !


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