ख़्वाब!
ख़्वाब!
ख़्वाब हमें जीना सिखाते हैं
ख़्वाब हमें अपना बनाते हैं
कभी हसाते हैं तो कभी रुलाते हैं
ख़्वाब तन्हाई में गले लगाते हैं
ज़ब जिंदगी में मिलती हैं
दर-व-दर की ठोकरें
ज़ब एक एक कर सब अपने
साथ छोड़ के जाते हैं
तब चुपके से आकर नज़रों में
ख़्वाब नई किरण जगाते हैं
कुछ इस तरह से ख़्वाब हमें
एक नई राह दिखाते हैं
आँखों में नमी और तन्हा धड़कन
हम फिर भी मुस्कुराते हैं
सच यही है –
ख़्वाब हमें जीना सिखाते हैं।