खेल
खेल
सहयोग,समर्पण भाव जहाँ
एकता का अंतर्भाव जहाँ,
जीत हार की बाजी चलती है,
खेल खेल कर दुनिया चलती है।
कभी पाना यहाँ ,कभी खोना यहाँ
कभी हँसना यहाँ,तो कभी रोना यहाँ
दिल से दिल को मिलवाता है,
यही खेल जीवन जीना सिखाता है।
पता नहीं क्या हो अगले पल,
है राही तू राह अपनी चले चल।
पत्थर भी पानी हो जाता है,
जब मानव खेल जीतता जाता है।
धरती से अंबर की दूरी क्या?
धूप छाँव की मजबूरी क्या?
अंसभव भी संभव बन जाता है,
मरुस्थल में भी फूल खिल जाता है।
दृढ़संकल्प,आत्मविश्वास रग रग में बहे,
स्थिर,अविचल,अडिग कर्म पथ पर रहे,
मानव को मानवता सिखलाता है,
खेल वसुधैव कुटुम्बकम बतलाता है।
प्रेम सद्भाव से रहो सभी,
मानवता न भूलो कभी।
खेल का ध्येय यही है,
मनोविनाद ही जिंदगी है।