ख़ामोशी
ख़ामोशी
ख़ामोशी अच्छी लगने लग गई
नसीब हुए जिसमें कुछ पल हसीं
अस्तित्व से अपने थी अनजान
ज़िन्दगी की जद्दोजहद में
खामोशी की कमी का था मुझे अहसास,
पाती कैसे अपनी थाह
खामोशी ने दी हलकी सी दस्तक
उसने करवाया मेरा परिचय
मुझ से, मेरे अंतर्मन से
शोर और ख़ामोशी, ज़मीं आसमां का फ़रक
मगर हो जाते कैसे एक दूजे में लीन
कहां शुरू कहां अंत, कैसी रेखा महीन
खामोशी ने दी कई कहानियां नई
परिप्रेक्ष्य हसीन- नए नज़ारे नया फलक!
नई दुनिया की आज़ाद झलक नई!
ख़ामोशी की होती है अपनी ही दास्तान
अधूरी इसके बिना हमारी हमसे पहचान!
