ख़ामोशी
ख़ामोशी
तोड़कर ये ख़ामोशी कर दो एहसान
मत लो इस कदर सब्र का इम्तिहान
फ़ासले हैं ज़रूरी करीबियों के लिए
ज़िद बेवजह की फ़िक्र से हैं परेशान
लाज़मी है कभी रूठना यूँ चाहतों में
होकर ख़फ़ा ऐसे बिखर गए अरमान
निभाएंगे वादों को हम ली थी कसम
एक तेरी नहीं से दिल हो गया हैरान
सोचा न था नफ़रत मे बदलेगी चाहत
बना लोगे ख़ुद को यूँ ग़ैरों सा अनजान।
