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Prashant Beybaar

Abstract Others

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Prashant Beybaar

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कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है

कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है

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कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है

उपवास के बाद जैसे प्यास बढ़ जाती है

कुछ चाहत, कुछ ज़रूरत, कुछ आदत सी है

रह-रह के दूरी इक दूजे की तड़प बताती है



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