कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है
कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है
कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है
उपवास के बाद जैसे प्यास बढ़ जाती है
कुछ चाहत, कुछ ज़रूरत, कुछ आदत सी है
रह-रह के दूरी इक दूजे की तड़प बताती है
कभी कभी फ़ासलों से मुहब्बत रंग लाती है
उपवास के बाद जैसे प्यास बढ़ जाती है
कुछ चाहत, कुछ ज़रूरत, कुछ आदत सी है
रह-रह के दूरी इक दूजे की तड़प बताती है