कब तक
कब तक
कब तक,
वो सिसकियां भरेगी।
कब तक,
दब-दब के रहेगी।
कब तब,
अंधेरे में जिएगी।
कब तक,
चुप कर के सहेगी।
कब तक,
बोल ना, कब तक।
एक दिन ये आक्रोश
ज्वाला बन के फूटेगा।
उस ज्वाला का तेज़
तेरे अस्तित्व को नोचेगा।
कब तक,
तू यूँ बचता फिरेगा।
कब तक,
यूँ तू जुल्म करेगा।
कब तक,
वो घड़ा पाप से भरेगा।
कब तक,
तेरी सांसे चलेगीं।
कब तक, बोल ना, कब तक।