कब मैंने माँगा ....
कब मैंने माँगा ....
नील गगन का चंदा
कब मैंने माँगा .....
माँगा थोड़ा सा उजियारा ....
जो अंधेरे को आगोश में ले ले ...
कब मैंने इंद्रधनुषी रंगों की जिद्द की
कब मैंने सोने चाँदी हीरे मोती चाहे ..
मुझे तो भावों के मोती ही भाते ..
बेशकीमती होते हैं सम्बन्ध सारे
काश कि लोग इनकी क़ीमत न
लगाते ..…
पर लोग भावों को कहाँ समझ पाते ?....