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Dr. NEERAJ SHUKLA

Abstract

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Dr. NEERAJ SHUKLA

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कौन कहता है तुम अकेले हो

कौन कहता है तुम अकेले हो

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कौन कहता है तुम अकेले हो ?

 साथ तुम्हारे

आदर्श लाम है

जो सादृश्य को,

 जड़ बना सकता है।


तुम्हें इस अकल्पित युग का,

शाह बना सकता है।

तुम्हें ईश्वर का,

ओहदा दिला सकता है।


या फिर,

तुम्है असंयमित,

अहवान बना सकता है।

कौन कहता है तुम अकेले हो ?

साथ तुम्हारे मान है, सम्मान है

स्वाभिमान भी तो है, जो तुम्हें,

अलंकृत करा सकता है।


साथ तुम्हारे अभिमान है,

जो तुम्हें, बहिष्कृत करा सकता है।

कौन कहता है तुम अकेले हो ?

है तुम्हारे साथ ईमानदारी,

बेईमानी भी तो है,

तुम्हारे साथ विवेक है,

परिष्कृत स्वविवेक है,

 जो तुम्हें, निर्णायक बना सकता है।


कौन कहता है तुम अकेले हो ?

तुम्हारे साथ सांस है, एहसास है,

और फिर प्रयास भी तो है,

जो परिणाम दिला सकता है।

कौन कहता है तुम अकेले हो ?


तुम्हारे साथ आस्था है, विश्वास है,

तभी तो विकास है।

तुम्हारे पास साहस है, दुस्साहस है।

 तुम्हारे साथ ध्यान है, अंतर्ध्यान है,

तभी तो ज्ञान है,

 जो तुम्हे ब्रह्मांड दिला सकता है,

 इस अकल्पित धरा का,

 फिर महावीर बना सकता है।


कौन कहता है तुम अकेले हो ?

साथ तुम्हारे है मर्यादा, गुणगान है,

निष्फल अभिराम है,

जो तुम्हें फिर राम बना सकता है।

कौन कहता है तुम अकेले हो ?

साथ तुम्हारे स्नेह है, जो गुमनाम है

जैसे प्राकृतिक छटा में सुगंध विद्दमान है

जो फिर तुम्हें श्याम बना सकता है।


कौन कहता है तुम अकेले हो ?

तुम्हारे साथ स्मृति है, प्रकृति है,

तभी तो मनोवृति है।

तुम्हारे पास राग है, अनुराग है,

तभी तो वैराग्य है।

 तुम्हारे पास अल्प है, कल्प है,

तभी तो विकल्प है।


 तुम्हारे पास आकार है, निराकार है,

तभी तो प्रकार है।

जो तुम्हें परमधाम बना सकता है।

कौन कहता है तुम अकेले हो ?

 यह सब तुम्हें महाप्राण बना सकता है।


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