कातिल
कातिल
ये तूफान को बड़ी जल्दी है आने की,
मेरे बनाए आशियाने को मिटाने की।
मेरे नाजुक हालात देेेेखकर मुुझसे मुंह मोड़ गया!
मेरा मुकद्दर भी कितना बेईमान निकला।
चमक रहा था टुकड़ा कांंच का
गलती से जिसे जवेरात समझा।
हर एक रिवाज़ - रीति - रस्में निभाई थी मैने,
एक मन्नत मांगी थी जिनसे...
मेरेे सुकून और खुुशियों का कातिल वही खुदा निकला !
