कान्हा अपने शहर का "लव"
कान्हा अपने शहर का "लव"
चंदन जैसा तन है तेरा खुशबू जैसे गुलाब की,
पावन धरा अमेठी महक है उसमें तेरे यार की।
ये प्यार की शोहरत है और परिंदा आसमान का,
वो देखे मेरी आँखों में तो लगे प्यार की शुरुआत की।।
एक प्रेम की धारा में मुस्कान मोहब्बत ऐसी की,
चंचल मन निश्चल निर्मल जैसे जल धारा गंगा की।
तुम मेरे प्यार की आखिरी सड़क बनो तो,
मैं बन जाऊंगा तेरे लिए प्यारी गुफा अजंता की।।
प्रकृति की प्यार की गोद में खेला यार तुम्हारा है,
जहां गया है कुछ हासिल करके ही आया है।
प्रेम रत्न की धारा में लवकुश ने कुछ शुरुआत तो की,
एक प्रेम की धारा में मुस्कान मोहब्बत ऐसी की।।
लाख छुपाएँ हुए हमने भी अज़ल से बात तो की,
अटूट आस्था मन में चंचलता का अभ्यास तो की।
चंदन जैसा तन है तेरा खुशबू जैसे गुलाब की,
पावन धरा अमेठी महक है उसमें तेरे यार की।।