जय श्री गणेशा"
जय श्री गणेशा"
चतुर्भुजाधारी करते मूषक सवारी, तुम हो श्री गणेशा, तुम हो मंगलकारी,
माता पार्वती तुम्हारी ,पिता श्री भोले भंडारी ।
चतुर्भुजाधारी----------सवारी।
माता पार्वती के प्यारे, जग में हो सबसे न्यारे,
सर्वप्रथम पूजित देव तुम, गणपति देव हमारे ।
रिद्धि सिद्धि माताएं हैं, अर्धांगिनी तुम्हारी।
चतुर्भुजाधारी----------सवारी।
शुभ फल दाता, भाग्य विधाता ,
तेरी शरण ,जो भी आता ।
मनोवांछित फल ,वह तो पाता।
तुम हो विघ्नहर्ता, सर्व सुख -कर्ता, शौर्य ,बल -दायक, सिद्धिविनायक, करते सर्व कष्ट निवारण,
जो आए शरण तुम्हारी।
चतुर्भुजाधारी---------सवारी।
पृथ्वी की परिक्रमा ,कार्तिकेय जी कर आए ,
तब निज बुद्धि से सोचा ,गणेश ने उपाय ।
निज मात पिता की ,सप्त वार परिक्रमा गणेश लगाएं ।
जब माता ने पूछा ,मंद मंद गजानन मुस्काए ,
बोले मात-पिता में पूर्ण संसार है बसता, फिर मात मेरी मैं क्यों इधर-उधर भटकता?
तव बुद्धि बल से, मात पिता अति हर्षाए।
सबसे पूज्य तुम हो, तुम हो बलकारी, सब पर पडते गणेशा तुम भारी।
चतुर्भुजाधारी---------सवारी।