-बहु की नोंक-झोंक
-बहु की नोंक-झोंक
तों कित तै आयी ए बहु,
तनैं पी लिया मेरा लहु।
जद तैं तों,म्हारे कुणबे म्ह आयी
ना मनैं तों ना फूटी आंख सुहायी
पढ़-लिख कै तों,रोब जमावै,
मेरे भोले बेटे पै काम करवावै।
काम करकै ओ बीमार सै पड ग्या,
किवाड ढकाकै तों, उसपै
अपणे पांव दबवावै।
कसूते जुल्म मैं क्यूकर सहूं।
तनैं पी लिया मेरा लहु।
ससुरा तेरा मांगै ,चाय जद भी
उसनै समझावै शुगर बढ जैगी।
चासणी म्हँ डूबी,तों इमरती खावै
इमरती देख खाण नैं,
जी म्हारा ललचावै।
पूर पाटेगी क्यूकर म्हारी ,
तों घणे नखरे मानैं दखावै।
मैं अपना रोणा कित रोऊं।
तनैं पी लिया मेरा लहु।
तों कित तै आयी ए बहु।
म्हारे छोरे को गोट लगाके
रात दिना रौव चलावै
बेटी बेटी मैं बुलावों
वो मुझको आँख दिखावै
ऐसी बहू कदा न आवै
चाहै छोरो क्वारो रह जावै।