जय जय गुरुदेव
जय जय गुरुदेव
जय जय गुरुदेव
आओ आओ सखियों,
सावन आ गया।
सत्संग का झूला झूलेंगे ,
मन में हरियाली भर लेंगे।
उषा बाई ने झूला लगाया,
सत्संग रूपी बाग सजाया।
गुरुजी को उस में बिठाया,
हम भी फूल बनकर महकेंगे।
बाई ने वाणी को वीणा बनाया,
मीठे सुरों से राग बनाया ।
सत्संगीयों के मन को झंकारा,
रोम-रोम को हर्षाया।
सत्संग ऐसा बरस रहा है,
रिमझिम बूंदों सा टपक रहा है।
आनंदित हो रहे सभी स्वांस,
भीग कर मगन हो रहे आज।
सावन की बूंदों में आनंद आ रहा,
हर घर में सत्संग छा रहा।
सुन सुनकर सत्संग आज,
तन मन को भीगो लेंगे।
अंतर के पट खुल ही रहे हैं,
धीरे-धीरे सब जाग रहे हैं।
आनंद की छा गई बहार,
आओ सखियों सावन आ गया ।
जन्मों से जो प्यास लगी थी,
मन की जो आस हमारी थी।
सत्संग की भी बाट बहुत थी,
वह पूरी हो रही है आज।
ऐसा सावन कभी न देखा,
हरा भरा हमारा तन मन हो रहा।
स्वांस स्वांस गा रही राग ,
आओ सखियों सावन आ गया।
हर घर में खुशहाली छाई,
हो रहे आनंद और बधाई।
शब्दों की चुनरी गुरुजी ने उढ़ाई,
मन हर्ष हर्ष रहा आज ।
आओ सखियों सावन आ गया,
सत्संग हर घर छा गया।
गुरू जी का आशीर्वाद आ गया,
आओ सखियों सावन आ गया।