जो मेरे द्वारे तू आए
जो मेरे द्वारे तू आए
प्राण मरुस्थल खिल-खिल जाए
साँस-डाल भी हिल-हिल गाए
छोड़ झरोखे राज महल के
जो मेरे द्वारे तू आए।
जुड़े सभा सपनों की आकर
आँखों की सूनी जाजम पर
खेल न पाएँ बूँदें खारी
पलकों की अरुणिम चादर पर
चहल-पहल हो मेलों जैसी
गुमसुम अधरों पर गीतों की
फूल उदासी झड़े धूल-सी
खिले जवानी नभ दीपों-सी
उमर चाल छिपते सूरज-सी
घबराकर पीली पड़ जाए।
छोड़ झरोखे राज महल के
जो मेरे द्वारे तू आए।
शुष्क मरुस्थल-सी सूखी देह से
फूट पड़ें अमृत के धारे
दीपदान करने को दौड़ें
खुशियाँ बुझे जिया के द्वारे
संगीतमयी संध्या-सी हों
डूबी-सी धड़कन की रातें
मानस की चौपाई जैसे
महकें अलसायी-सी बातें
झरे मालती रोम-रोम से
कस्तूरी गंध बदन छाए।
छोड़ झरोखे राज महल के
जो मेरे द्वारे तू आए।
उतर चाँदनी नील गगन से
पूरे चौका मन आँगन में
चुनचुन मोती जड़ें रातभर
सितारे फकीरी दामन में
थपकी दे अरमान उनींदे
अंक सुलाए रजनीगंधा
भर-भर प्याली स्वपन सुधा की
चितवन से छलकाए चंपा
भोर भए पंछी-बिस्मिल्लाह
शहनाई ले रस बरसाए।
छोड़ झरोखे राज महल के
जो मेरे द्वारे तू आए।