जननी
जननी
जननी जैसा कौन जहाँ में,
माँ तू न होती तो होती कहां मैं,
दुनिया सारी जब धूप लगे,
मिलती राहत तेरे आंचल की छांव में.
मैं जब जब जागी तू न सोई,
मेरे दर्द से तू भी रोई,
मेरी एक आह पे मां
उठ जाती तू आधी रात में,
खुशकिस्मत हूँ, जो तेरी ममता
मिली मुझे सौगात में.
पहला शब्द तू म्ही से सीखा,
संस्कारों से तू ने सींचा,
खूबी पर तारीफों के पुल भी बांधे,
गलती पर जमकर कान भी खींचा,
कमी नहीं की तू ने कोई,
मेरा भविष्य बनाने में,
पंख दिए मेरे अरमानों को,
न बांधी बेडियां मेरे पांव में,
चाहे निज उमरिया बीता दी तूने,
मर्यादा की दीवार में,
माना हिसाब की कच्ची थी तू ,
पर सूझबूझ की पक्की थी तू ,
सीखा मैने तू झसे ही
कैसे थोड़े से नोन, तेल, लकड़ी में,
जीवन नौका दौड़ पड़े मझधार में,
सब कहते माँ अनपढ़ थी तू ,
पर मेरी खातिर तू झसा ज्ञानी नहीं कोई संसार में,
लाख डिग्रीयाँ हासिल कर लूँ,
पर तू झसे मिला जो प्यार दुलार,
मिला जो जीवन का सार,
मिलता न किसी ज्ञानकोष में,
न मिल पाता किताबों की बाज़ार में,
माँ तू समाई मेरे रग रग में,
शायद इसी लिए हूँ तेरी परछाई मैं,
तू झ बिन होता न अस्तित्व जहाँ में,
माँ जो तू न होती तो होती कहां मैं.