STORYMIRROR

Ekta Gupta

Abstract

4  

Ekta Gupta

Abstract

जल, प्रकृति और पर्यावरण

जल, प्रकृति और पर्यावरण

1 min
475

जल प्रकृति और पर्यावरण पर

गहराया है संकट गहरा।

हमें दिया जिसने आवरण

उसे ही लग गया ग्रहण।


भूमि जल वायु और ध्वनि प्रदूषण

छीनने चले थे इनकी पहचान।

वहीं उजाड़ रहे थे पशु - पक्षियों का घर

खड़ा करके अपने खुद के महल।


प्रकृति खड़ी हुई उनके विरुद्ध

किया निर्णय अब चुप ना बैठूंगी।

लूंगी अपने अपमान का बदला

तभी फैला कोरोना का आतंक

जिसने कर लिया चपेट में हम सबको।


सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर बंद है

हम सभी घरों में गुलाम बनकर।

पशु-पक्षी बेरोक टोक

बेखौफ घूम रहे राजा बनकर।


कारखाने बंद गाड़ियां बंद और

उनसे निकलने वाली जहरीली गैसे भी बंद

हो रही जल प्रकृति और पर्यावरण स्वच्छ।

हे मानव! तुमने इनके उपकार को

अपकार में बदल दिया इस वायरस ने

दिया अपकार का प्रतिघात।


समय बदला तुम कब बदलोगे ?

हे मानव ! संभल जाओ समय रहते

वरना! रेत की तरह फिसल जाओगे।

हे प्रकृति ! करो उपकार क्षमा करो

दो हमें नव - जीवन का आशीर्वाद।

अब है यह प्रण

रखेंगे

जल प्रकृति और पर्यावरण का ख्याल।

हे जीवनदायिनी ! हे प्राणश्रोत दायिनी !

फिर बरसाओ हम पर वही ममता वाला दुलार।

कर दो एक बार फिर ये उपकार ये उपकार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract