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Ekta Gupta

Abstract

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Ekta Gupta

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रंगबरसे, खुशियों की फुहार

रंगबरसे, खुशियों की फुहार

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खुशियों की फुहार बरसी है फिर इस अंगना ,

भींग जाना ना अब कोई बहाना ।

राजा - रंक का भेद भुला...

अबीर होली, होली के साथ।

 भांग का रंग चढ़ा दूर हुए गिले-शिकवे ,

अब ना कोई दूरी थी , ना कोई मजबूरी थी ।

आई खुशियों की फुहार फिर मेरे अंगना,

भीग जाना ना अब कोई बहाना।

 बरसा ऐसे सारा रंग...

 पुलकित हुआ हर अंग -अंग ।

गले लगा किया तिलक ,

जो ना बरसों में कर पाया,

कर दिखाया ये चुटकी भर रंग।

 रंग का ऐसा रंग चढ़ा,

 हुए दूर गिले-शिकवे ,

आई फिर खुशियों की फुहार मेरे अंगना ,

भीग जाना ना अब कोई बहाना।


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