रंगबरसे, खुशियों की फुहार
रंगबरसे, खुशियों की फुहार
खुशियों की फुहार बरसी है फिर इस अंगना ,
भींग जाना ना अब कोई बहाना ।
राजा - रंक का भेद भुला...
अबीर होली, होली के साथ।
भांग का रंग चढ़ा दूर हुए गिले-शिकवे ,
अब ना कोई दूरी थी , ना कोई मजबूरी थी ।
आई खुशियों की फुहार फिर मेरे अंगना,
भीग जाना ना अब कोई बहाना।
बरसा ऐसे सारा रंग...
पुलकित हुआ हर अंग -अंग ।
गले लगा किया तिलक ,
जो ना बरसों में कर पाया,
कर दिखाया ये चुटकी भर रंग।
रंग का ऐसा रंग चढ़ा,
हुए दूर गिले-शिकवे ,
आई फिर खुशियों की फुहार मेरे अंगना ,
भीग जाना ना अब कोई बहाना।