STORYMIRROR

Palak Chauhan

Abstract

3  

Palak Chauhan

Abstract

ज़िंदगी

ज़िंदगी

1 min
24


इसका हर एक दिन सुहाना लगता है,

कभी ठहरना तो कभी चलते रहना।

रोज़ मन करता हैं जी लूं,

एक सा लिखा हुआ

कुछ खावब सा मिटा हुआ।

बस चलते रहना सीखा है हमने,

कुछ नया करने की चाह में आगे बढ़ते रहे,

बस दूसरों को खुश नहीं करना अब।

देखा हैं क्या होता है,

हर पल एक नया चीज का इंतजार रहता है,

क्या करें जब जिंदगी ने इतना कुछ सीखा दिया है।

खोया खोया सा अब लगता है,

पर गम छुपाने में कोई शर्म नहीं है,

तू रुक मत चलते रहना।

कोई बात नहीं,

सब ठीक होगा,

अब यादों को समेट के रखना ज़रूरी है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract