ज़िंदगी
ज़िंदगी
इसका हर एक दिन सुहाना लगता है,
कभी ठहरना तो कभी चलते रहना।
रोज़ मन करता हैं जी लूं,
एक सा लिखा हुआ
कुछ खावब सा मिटा हुआ।
बस चलते रहना सीखा है हमने,
कुछ नया करने की चाह में आगे बढ़ते रहे,
बस दूसरों को खुश नहीं करना अब।
देखा हैं क्या होता है,
हर पल एक नया चीज का इंतजार रहता है,
क्या करें जब जिंदगी ने इतना कुछ सीखा दिया है।
खोया खोया सा अब लगता है,
पर गम छुपाने में कोई शर्म नहीं है,
तू रुक मत चलते रहना।
कोई बात नहीं,
सब ठीक होगा,
अब यादों को समेट के रखना ज़रूरी है।।