जिन्दगी
जिन्दगी
ऐ ज़िन्दगी तुझे यूं
चलते देखा,
हर समय तुझको
बदलते देखा
तुझमें सपनों को बनते देखा
तुझमें ही उन्हें
बिखरते देखा,
सोचा सपने अब ना देखू
फिर भी आइने में
खुद को संवरते देखा,
उस आइने को टूटते भी देखा
उसके टुकड़ों में
खुद को गिरते भी देखा।
मिले थे कुछ अजनबी
इन राहों में,
पर तुझमें उनको
बिछड़ते देखा,
इस भीड़ में कुछ अपने भी थे
पर उनमें भी
रिश्तों को बदलते देखा
तुझमें खुद को उठते देखा
तुझमें ही खुद को गिरते देखा
ऐ ज़िन्दगी तुझे यूं
चलते देखा
हर समय तुझको बदलते देखा।
