जिंदगी
जिंदगी
चल छोड़ दूं मैं अपेक्षाएं दुनिया भर से।
चल तोड़ लूं मैं नाता दुनिया भर से।
पर ये लोग, ये लोग मुझे क्या जीने देंगे?
हूं भागता मैं दूर जितना इन सभी से,
ये घुस ही जाते इस जहन में इक तरफ से।
हां तोड़ लूं मैं नाता अगर सबसे, फिर क्या?
हां खतम करूं अपेक्षाएं सबसे, फिर क्या?
जो बैठते हो तुम अकेले, पागल-घमंडी बोलेते सब।
जो पास बैठो भरेंगे ये विष से तुमको।
चल छोड़ दूं मैं अपेक्षाएं दुनिया भर से।
चल तोड़ लूं मैं नाता इस दुनिया भर से।।
ये जीवन नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे।
इक जहर का दरिया है बस पीते जाना है।।
