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Niti Sharma

Abstract Others

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Niti Sharma

Abstract Others

ज़िंदगी

ज़िंदगी

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कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,

वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी, 

फिर ढूँढा उसे इधर उधर

वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी, 

एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार, 

वो सहला के मुझे सुला रही थी

हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से

मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी, 

मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया कमबख़्त तूने,

वो हँसी और बोली- मैं ज़िंदगी हूँ पगले

तुझे जीना सिखा रही थी।


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